CG TAHALKA

Trend

*हाथरस में मौत का सत्संग, भगदड़ में 121 मौतें, तबाही का जिम्मेदार कौन*

उत्तर प्रदेश/ हाथरस: उनको यकीन था कि बाबा की एक झलक उन्हें उनके कष्टों से मुक्ति दे देगी. एक बूढ़ी औरत जो महीनों से बीमार थी, बुखार छूट ही नहीं रहा था, वह अपनी 16 साल की पोती के साथ इस यकीन से आयी थी बाबा की चरणरज मिलते ही वह भली चंगी हो जाएगी. एक विधवा का बच्चा बीमार था, वह अपने बच्चे के ठीक होने की उम्मीद लगाकर उसको लेकर बाबा के सत्संग में आयी थी. उस बूढ़े पर लाला का कर्ज था, वह इस आशा से आया था कि बाबा के आशीर्वाद से इस बार फसल अच्छी हो जाएगी तो कर्ज उतर जाएगा. कितनी ही जवान लड़कियां अच्छा घरवर पाने का आशीर्वाद बाबा से प्राप्त करना चाहती थीं. उनसे कहा गया था कि अगर बाबा की चरण धूलि मिल गयी तो हर अरमान पूरा हो जाएगा. कितने लड़के इस आशा में आये थे कि बाबा के आशीर्वाद से नौकरी लग जाएगी तो घर की बदहाली ख़त्म होगी.


बाबा के सत्संग में हाथरस जिले से ही नहीं बल्कि कस्बों से, दूरदूर के गांवों से, अन्य जिलों से और हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से भी कोई दो से ढाई लाख लोग जमा हुए थे. भीड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वाहनों की संख्या तीन किलोमीटर तक फैली हुई थी. हर श्रद्धालु के मन में कोई इच्छा थी और यकीन था कि वह इच्छा बाबा के आशीर्वाद से पूरी हो जाएगी. बाबा की दिव्य वाणी कानों में पड़ जाएगी तो सारे कष्ट दूर हो जाएंगे. देश की भोली, अनपढ़, धर्मभीरु जनता को यह यकीन बाबा ने दिलाया, बाबा के सैकड़ों सेवादारों ने दिलाया और धर्म का परचम बुलंद करके राजनीति की चाशनी चाटने वाली भारतीय जनता पार्टी ने दिलाया जो इन बाबाओं के प्रति लोगों की उत्सुकता जगाने का काम पिछले दस सालों से निरंतर कर रही है.

भोले ग्रामीण और उससे भी भोली ग्रामीण महिलाएं कितनी आशाएं लेकर बाबा के सत्संग में आयी थी. धर्म का सबसे ज्यादा डर औरतों में ही फैलाया जाता है. धर्म और धर्म के ठेकेदारों की सेवा औरतों से ही करवाई जाती है. उनसे कहा जाता है कि यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया तो उनके पूरे परिवार पर प्रलय आ जाएगी. तो ऐसे सत्संगों में औरतों की उपस्थिति सबसे ज्यादा होती है.

बाबा के सत्संग में भी औरतें अपनी पतियों, बच्चों के साथ बड़ी संख्या में आयी थीं. कोई ट्रेक्टर ट्रौली पर लद कर आया था, कोई बस से, कोई टैम्पो पकड़ के, कोई किराए की गाड़ी पर, कोई बस से तो कोई अपने दोपहिया वाहन पर. लेकिन उनकी वापसी चार कन्धों पर हो रही थी. अनेक लोगों को एक ही एम्बुलेंस में एक के ऊपर एक डाल कर ले जाया जा रहा रहा था. अनेक औरतों को बस की सीटों पर लिटा दिया गया था. सीटों पर जगह भर गयी तो बस की जमीन पर लिटाया जाने लगा. जिस बस में ज़िंदा आईं थीं उसी में लाश बन कर जा रही थी. क्योंकि वह मौत का सत्संग था और बाबा ने यमराज बनकर सबकी जान हर ली थी. हाथरस में बाबा के सत्संग में जब भगदड़ मची तो एक दूसरे के पैरों तले कुचल कर मारे जाने वालों में सात नन्हें मासूम बच्चों और दो पुरुषों के अलावा मरने वाली सब औरतें ही हैं.

उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के सिकंदराराऊ में 2 जुलाई मंगलवार की दोपहर नारायण साकार विश्व हरि भोले बाबा नाम के एक बाबा ने सत्संग का आयोजन किया था. ऊंचे मंच पर बाबा अपनी पत्नी के साथ विराजमान था. सामने विशाल मैदान में कोई ढाई लाख लोग जिसमें बड़ी संख्या में महिलायें और बच्चे थे, भीषण गर्मी में बैठे बाबा का प्रवचन सुन रहे थे. अचानक मंच पर बाबा उठ खड़ा हुआ. सेवादारों ने आवाज लगानी शुरू की – बाबा प्रस्थान कर रहे हैं. आप लोग उनकी चरणरज ले लें और अपने कष्टों से मुक्ति पाएं.



भीड़ बिना सोचे समझे उठ कर बाबा की ओर बढ़ने लगी. इससे पहले कि बाबा नजरों से ओझल हो जाएं भीड़ उन तक पहुंच जाना चाहती थी. बाबा की चरणर पाकर अपने कष्टों से मुक्ति पाने के लिए ही तो इतनी दूर आये थे. किसी तरह चरणरज तो मिलनी ही चाहिए. वरना आना ही फिजूल हो जाएगा. भीड़ एक दूसरे पर चढ़ कर बाबा के निकट पहुंच जाना चाहती थी. धक्के पर धक्के लग रहे थे. चीख पुकार मच रही थी. तभी एक औरत धक्का खा कर गिरी. भीड़ उसके जिस्म पर उसके सिर पर चढ़ कर बाबा की ओर लपकी. फिर कई औरतें और बच्चे गिरे. भीड़ उनको भी कुचलती हुई बाबा की ओर बढ़ी जा रही थी. आगे दलदल से भरा खेत था. कइयों का पैर फिसला. वे एक के ऊपर एक गिरने लगे. पीछे से उमड़ रही भीड़ ने कोई परवाह नहीं की. वे तो बस किसी तरह बाबा तक पहुंचने के लिए पूरा जोर लगा रहे थे. और बाबा अपने सेवादारों के बीच अपनी कार की तरफ लपके जा रहे थे. उनके पीछे दलदल में लोग एक के ऊपर एक गिर रहे थे. रौंदे जा रहे थे. उनकी चीख बाबा के कानों को सुनाई नहीं दे रही थी. दलदल में नीचे दबे लोगों के मुंह और नाक में गीली मिट्टी भर चुकी थी. उनकी साँसें टूट रही थीं. एक नहीं दो नहीं कोई डेढ़ सौ से ज़्यादा लोग कष्टों से मुक्ति पाने की आशा में जीवन से मुक्ति पा चुके थे. मगर बाबा ने उनकी ओर एक बार पलट कर भी नहीं देखा. उसके सेवादार पास आने वाले श्रद्धालुओं पर लाठियां भांज रहे थे कि कहीं उनके गंदे हाथ बाबा के उजले कपड़ों से ना छू जाएं. उनकी लाठियां खा कर कितने ही लोग घायल हुए. कितने जमीन पर गिर गए और दूसरों द्वारा रौंद डाले गए. मगर बाबा इन मौतों से बेखबर बढ़ता चला गया और अपनी लखदख कार में सवार होकर निकल गया.

नारायण साकार विश्व हरि भोले बाबा नाम का यह बाबा कौन है? जो हाथरस का यमराज बन कर आया और डेढ़ सौ लोगों की जानें लील कर अंतर्ध्यान हो गया? कब और कैसे उसकी ख्याति इतनी बढ़ गयी कि उसके लाखों अनुयायी बन गए? दरअसल इस बाबा का असली नाम है सूरज पाल सिंह है. 17 साल पहले सूरज पाल सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में एक सब इंस्पेक्टर था. नौकरी से इस्तीफा देकर यह सत्रह साल पहले बाबा बन कर प्रवचन करने लगा. वह अपनी पत्नी के साथ गांव गांव पंडाल लगा कर प्रवचन करता और जल्दी ही उसने अपने सेवादारों की एक फ़ौज बना ली. सेवादार उसकी ख्याति बांटने में लग गए. बाबा ये चमत्कार कर सकते हैं. बाबा कष्टों से मुक्त कर सकते हैं. बाबा की वाणी में परमात्मा का वास है. उनकी दिव्यवाणी कानों में पड़ते ही सारे दुःख दूर हो जाते हैं. ऐसी बातें दूर दूर तक फैलाई गयी. जल्दी ही बाबा मशहूर हो गया और उसके बड़े बड़े कार्यक्रमों का आयोजन होने लगा. जिसमें टिकट लेकर लोग आने लगे. पहले उसने अपनी पैतृक जमीन पर एक आश्रम बनाया फिर गांव-गांव, शहर-शहर बाबा की समितियां बन गयीं. समितियों के माध्यम से सत्संग के आयोजन होने लगे. पूरा खर्चा समितियां उठाती और उसके सदस्य लोगों से चन्दा जुटाते. प्रवचन के बाद भंडारा होता, जिसका प्रसाद पाने के लिए भीड़ टूटी पड़ती.



बाबा महंगे सूटबूट और आंखों पर काला चश्मा चढ़ा कर चांदी के चमकते सिंहासन पर बैठता और प्रवचन करता. उसकी आस्था का साम्राज्य फैलने लगा और जल्दी ही वह लाखोंकरोड़ों में खेलने लगा. सत्ता से नजदीकियां बन गयीं. पुलिस प्रशासन को वह अपनी जेब में रखने लगा. यादव बिरादरी से सम्बन्ध रखने वाला यह बाबा जल्दी ही गरीब, वंचित समाज का परमात्मा बन गया. जहां उसके सत्संग होते, जहां लाखों की भीड़ वह जुटाया, उस ओर से प्रशासन अपनी आंखें मूँद लेता. किसी भी ऐसे आयोजन के लिए जिसमे इतनी बड़ी तादात में लोगों का हुजूम उमड़ना हो तो प्रशासन से उसकी परमिशन लेनी होती है. कार्यक्रम की अनुमति के लिए क्षेत्र के थानाप्रभारी और चौकी इंचार्ज से लेकर बीट के सिपाही तक की रिपोर्ट लगती है. मगर बाबा के कार्यकर्म में इतनी बड़ी तादाद में लोगों के आने के बावजूद कभी किसी ने कोई सवाल नहीं किया और उसको हर सत्संग के लिए चुटकियों में अनुमति मिलती रही.

बाबा प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की योगी सरकार के लिए बड़ा वोटबैंक खड़ा कर चुका था. बाबा के एक इशारे पर उसके प्रवचन सुनने वाली जनता अपना वोट भाजपा की झोली में डालती थी, तो ऐसे में बाबा के कार्यकर्मों पर कौन ऊँगली उठाता? मजेदार बात यह कि पुलिस में बाबा के कई अनुयायी थे. बाबा के सत्संग आयोजित होते तो ये अनुयायी पुलिस की वर्दी उतार कर बाबा के सेवादार बन जाते और पूरी व्यवस्था देखते. बाबा भारतीय जनता पार्टी और संघ के कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहे थे. बाबा देश की गरीब जनता के दिल दिमाग में धर्म का डर बिठाने और साधुसंतों, पंडितपुजारियों की सेवा में ही स्वर्ग की प्राप्ति का मार्ग दिखा रहे थे. बाबा बता रहे थे कि जनता के मूल मुद्दों, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी और तमाम दूसरी समस्याओं का समाधान सरकार के पास नहीं भगवान् के पास है, ऐसा करके बाबा सरकार को बड़ी रहत पहुंचा रहे थे, तो बाबा पर कोई ऊंगली कैसे उठती? बाबा संघ और भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे थे, यही वजह है कि डेढ़ सौ मौतों के बाद जो एफआईआर पुलिस ने दर्ज की उसमें बाबा का कहीं नाम तक नहीं है. सैकड़ों लोग गंभीर घायल अवस्था में अस्पतालों में जिंदगी-मौत की जंग लड़ रहे हैं, डेढ़ सौ लोगों को मार कर बाबा फुर्र हो गया, मगर योगी की पुलिस उसको गिरफ्तार करने की कोशिश भी करती नज़र नहीं आ रही है. उलटे योगी बयान दे रहे हैं कि हम पता करेंगे कि यह हादसा है या किसी की साजिश? लानत है ऐसे शासन-प्रशासन पर.

हत्यारा सिर्फ बाबा नहीं सरकार भी है
देश में आये दिन धार्मिक स्थलों पर भारी भीड़ जुटने लगी है. आये दिन इन स्थलों पर भगदड़ मचती है. एक्सीडेंट होते हैं और वे श्रद्धालु जो बड़ी आस्था लेकर आते हैं, हादसों का शिकार हो रहे हैं. मारे जा रहे है. घायल हो रहे हैं. उनका अंगभंग हो रहा है. जीवन भर के लिए अपंगता का शिकार हो रहे हैं. मगर इससे सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता. 140 करोड़ में से कुछ हजार या कुछ लाख कम हो जाएं तो क्या गम?

लेकिन उस मासूम बच्चे की हालत देखो जो हाथ में दूध की बोतल लिए दलदल में अपनी मां की लाश से चिपका बैठा है? उसका पूरा बचपन और किशोरावस्था जो उसकी मां की छत्रछाया और सुरक्षा में बीतना था वह सहारा इस सरकार और उसके पाले हुए बाबाओं ने छीन लिया.

उस बूढ़ी दादी से पूछो उसके दिल पर क्या गुजर रही है जो अपनी सोलह साल की पोती की लाश के पास बैठी यह सोच रही है कि बेटाबहू पूछेंगे कि उनकी इकलौती बेटी कैसे मर गयी तो वह क्या जवाब देगी?

उस आदमी से पूछो जो दोनों हाथ में एक एक बच्चा उठाये अपनी बीवी की लाश को टुकुर टुकुर देख रहा है जैसे वह अभी उठ खड़ी होगी और कहेगे लाओ मुन्ने को मुझे दे दो. तुम कहां दोनों को उठा कर चलोगे?

एक एक आदमी की पीड़ा अगर पूछी जाए तो हृदय फट जाए. मगर सरकार की सेहत पर उनके दुःख का कोई असर नहीं होता. वह मरने वाले के परिजन को दो दो लाख और घायलों को पचास हजार की रकम देकर अपने फर्ज से मुक्त हो जाती है. हर बार हर हादसे के बाद ऐसा ही होता है और जब तक हम धार्मिक चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकलेंगे तब तक ऐसा ही होता रहेगा.


Share This News

WhatsApp
Facebook
Twitter

Recent Post

You cannot copy content of this page