बाल विवाह रोकथाम कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए उच्चतम न्यायालय ने कई दिशा-निर्देश जारी किए है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 सभी ‘पर्सनल लॉ’ पर प्रभावी होगा।
सुप्रीम कोर्ट में बाल विवाह रोकथाम कानून को लेकर शुक्रवार को सुनवाई हुई। इस कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए उच्चतम न्यायालय ने कई दिशा-निर्देश जारी किए। एससी ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 सभी पर्सनल लॉ पर प्रभावी होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह निषेध कानून में कुछ खामियां हैं। साथ ही, यह टिप्पणी की कि बाल विवाह से जीवनसाथी चुनने का विकल्प छिन जाता है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, ‘बाल विवाह निषेध अधिनियम को व्यक्तिगत कानूनों से बाधित नहीं किया जा सकता। बच्चों विवाह पसंद का जीवनसाथी पाने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन करते हैं।’।
एससी की बेंच ने कहा कि अधिकारियों को अपराधियों को दंडित करते समय बाल विवाह की रोकथाम और नाबालिगों की सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए। पीठ ने कहा, ‘निवारक रणनीति अलग-अलग समुदायों के हिसाब से बनाई जानी चाहिए। यह कानून तभी सफल होगा जब बहु-क्षेत्रीय समन्वय होगा। कानून प्रवर्तन अधिकारियों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की आवश्यकता है। हम इस बात पर जोर देते हैं कि इस मामले में समुदाय आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।’
वैवाहिक दुष्कर्म मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 बाल विवाह को रोकने और समाज से उन्मूलन को सुनिश्चित करने के लिए लाया गया। इस अधिनियम ने 1929 के बाल विवाह निरोधक अधिनियम की जगह ली। इससे पहले गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह भारतीय दंड संहिता (IPC) और भारतीय न्याय संहिता (BNS) के उन दंडनीय प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर निर्णय करेगी, जो बलात्कार के अपराध के लिए पति को अभियोजन से छूट प्रदान करता है। अगर वह अपनी पत्नी (जो नाबालिग नहीं है) को उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है। पीठ ने केंद्र की इस दलील पर याचिकाकर्ताओं की राय जाननी चाही कि इस तरह के कृत्यों को दंडनीय बनाने से वैवाहिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ेगा।