बिलासपुर। राज्य में जब कांग्रेस की सरकार काबिज थी,यह मामला उसी समय का है। शिक्षकों की पदोन्नति और उसके बाद पदस्थापना किया जाना था। पढ़ने में शिक्षा विभाग की यह विभागीय प्रक्रिया जितनी सरल और सहज लग रही है,हकीकत कुछ दूसरा ही है। जिन अफसरों ने राज्य शासन ने इसकी जिम्मेदारी संपी थी उन लोगों ने प्रक्रिया को इतनी टेढ़ी बना दी और संभावनाएं इतनी ज्यादा रखी कि भ्रशाचार की पूरी-पूरी गुंजाइश उनके लिए बन गईं। प्रमोशन के बाद पदस्थापना में जिस तरह घोटाले किए गए इसकी शिकायत राज्य शासन तक पहुंची। राज्य सरकार की नजरें भी तिरछी हुई। संभागायुक्तों को घोटाले की जांच करने और रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था।
राज्य शासन के निर्देश पर संभागायुक्तों ने जांच के लिए कमेटी बनाई और एक पखवाड़े के भीतर रिपोर्ट देने कहा। बिलासपुर संभाग में बड़े पैमाने पर घोटाला फूटा। कमेटी जांच रिपेार्ट में इस बात को खासतौर उभारा कि पदोन्नति के बाद पदस्थापना देने में शिक्षा विभाग के जिम्मेदारों ने जमकर भ्रष्टाचार किया है। प्रमोशन के बाद शिक्षा विभाग ने पदस्थापना देना शुरू कर दिया था। क मिश्नरों की रिपोर्ट के बाद राज्य शासन ने शिक्षा विभांग द्वारा किए गए पदस्थापना आदेश को रद कर दिया।
शासन के आदेश के बाद स्कूल शिक्षा विभाग ने आदेश में स्पष्ट किया था कि सभी शिक्षकों को एकतरफा कार्यमुक्त किया जाता है और वे अगर 10 दिन के भीतर पूर्व में जहां पोस्टिंग हुई थी, वंहां ज्वाइन नहीं करेंगे तो उनका प्रमोश निरस्त समझा जाएगा।तब अकेले बिलासपुर संभाग में 70 से ज्यादा शिक्षकों की संशोधन पदस्थापना हुई थी। राज्य शासन ने अपने आदेश में सभी शिक्षकों को 10 दिन के भीतर काउंसिलिंग के दौरान मिले स्कूलों में ज्वाइन करने का आदेश जारी किया था।
शासन के आदेश के दूसरे दिन बिलासपुर संभाग में 150 शिक्षकों ने रिलीव ले लिए। संशोधन पदस्थापना आदेश निरस्त होने के बाद प्रभावित होने वाले 600 से अधिक शिक्षक हाई कोर्ट पहुंच गए हैं। शासन के निरस्त आदेश को बहाल करने की मांग करते हुए अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से अलग-अलग याचिकाएं दायर की।
राज्य सरकार ने पोस्टिंग निरस्त के साथ ही उन्हें एकतरफा कार्यमुक्त कर दिया था। उनके सर्विस बुक में भी रिलीव कर दिया गया । 4 सितंबर 2023 को निरस्तीकरण का आदेश निकला था। इस तिथि से ज्वाइन करने के लिए 10 दिन का समय दिया गया था। लिहाजा 13 सितंबर तक उन्हें ज्वाइन करना था। शिक्षकों ने सोचा था कि 12 सितंबर तक अगर हाई कोर्ट से कुछ नहीं हुआ तो 13 सितंबर को ज्वाईन कर लेंगे। मगर इससे पहले हाई कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दे दिया। याने याचिका लगाने वाले शिक्षकों की स्थिति फिलहाल पंडुलम जैसी हो गई.।
तब एजी ने बताया था जिसने गड़बड़ी की उनका तबादला हुआ निरस्त
इस मामले में सरकार की तरफ से तत्कालीन महाधिवक्ता सतीशचंद्र वर्मा खुद कोर्ट में खड़े हुए। उन्होंने स्पष्टतौर पर कोर्ट को बताया कि सरकार ने संभाग के सबसे बड़े अधिकारी याने कमिश्वर क रिपोर्ट पर कार्रवाई की है। क मिश्वरों की रिपोर्ट में माना गया है कि पैसे देकर शिक्षकों ने अपने घर के नजदीकी स्कूलों में ट्रंसफर करा लिया। उन्होंने ये भी कहा कि सरकार ने न तो उनका प्रमोशन निरस्त किया है और न ही पूर्व में जहां पोस्टिंग डुई थी, उसे निरस्त किया है। निरस्त सिर्फ उसे किया गया है, जिसमें व्यापक गड़बड़िया की गईं।
दुर्ग के तत्कालीन जेडी के शुरू हुई जांच
दुर्ग के तत्कालीन प्रभारी संयुक्त संचालक जीएस. मरकाम के विरूद्ध संस्थित विभागीय जांच के संबंध में कार्यालय संभागीय संयुक्त संचालक शिक्षा संभाग दुर्ग के कार्यालय में शासकीय गवाहों (शिक्षकों) के बयान दर्ज करने हेतु आज सुबह 11 बजे से 05 बजे तक का समय तय किया गया था।
दुर्ग जिले से 164 शिक्षकों का शासकीय गवाह के रूप में बयान लेने शिक्षकों को पहले ही सूचना भेजी जा चुकी थी। संबंधित शिक्षकों को नियत तिथि एवं समय पर निर्धारित स्थल में बयान दर्ज कराने हेत उपस्थिति का कहा गया था। तत्कालीन जेडी के खिलाफ जांच और शिक्षकों का बयान लेने के लिए जेपी. रथ अतिरिक्त संचालक राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद छ.ंग को जांच अधिकारी बनाया गया है। शिक्षकों के बयान और जांच अधिकारी की रिपोर्ट के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।