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वायनाड से मिला सबक, कुदरत के संदेश की अनदेखी अब और नहीं।

अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए मशहूर केरल के वायनाड में इन दिनों तबाही और खौफ का मंजर पसरा हुआ है। यह नतीजा है पर्यावरण से खिलवाड़, हमारे अंतहीन लालच और चेतावनियों की अनदेखी का। लैंडस्लाइड में मरने वालों की संख्या 300 को पार कर गई है। राज्य सरकार कह रही है कि बचाव कार्य चंद दिनों ें पूरा होने वाला नहीं। लेकिन, क्या इस सवाल का जवाब सरकार या किसी के भी पास है कि वायनाड < हमने जिन्हें खोया और जो गंवाया, उसकी जिम्मेदारी किस पर है

हादसे की वजह

ISRO के हैदराबाद सेंटर ने प्रभावित इलाके की सैटलाइट तस्वीरें ली हैं। उसके मुताबिक 1,550 मीटर की ऊंचाई पर भारी बारिश के चलते भूस्खलन हुआ। पानी के साथ बड़े पैमाने पर मलबा आया, तो भूस्खलन का दायरा बढ़ता गया और यह करीब आठ किलोमीटर तक फैल गया। यह तो वह वजह है, जो चंद तस्वीरों से नजर आती है और तात्कालिक है। सारा दोष भारी बारिश पर मढ़ देने से काम नहीं चलेगा।

खतरे वाली जगह

केवल केरल ही नहीं, पूरा पश्चिमी घाट पर्यावरण की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने 2022 में संसद में बताया था कि 2015 से 2022 के दरम्यान देशभर में 3,782 भूस्खलन दर्ज किए गए थे। इनमें से 59% से ज्यादा घटनाएं सिर्फ केरल में हुईं। देश के जिन 30 जिलों में लैंडस्लाइड का खतरा सबसे ज्यादा है, उनमें से 10 तो सिर्फ केरल में हैं।

घटती हरियाली

वायनाड यूंही अचानक लैंडस्लाइड प्रोन एरिया नहीं बन गया। 2022 की एक स्टडी बताती है कि 1950 से 2018 के दौरान वायनाड में जंगल का एरिया 62% तक घट चुका है। हालांकि सरकार पौधारोपण करती है, लेकिन क्या रोपे गए पौधे सदियों से आबाद जंगलों की जगह ले सकते हैं?

सुझावों की अनदेखी

भारत सरकार ने साल 2011 में वेस्ट्न घाट इकॉलजी एक्सपर्ट पैनल गठित किया था। इस पैनल ने पश्चिमी घाट को इको-सेंसिटिव घोषित करने की सिफारिश की थी। साथ ही सुझाव दिया था कि पारिस्थितिक संवेदनशीलता के आधार पर इस इलाके को जोन में बांटा जाए और उसके हिसाब से इंसानी गतिविधियों पर लगाम लगाई जाए। ये सिफारिशं फाइलों में ही पड़ी रीं। क्षेत्र में बेहिसाब निर्माण होते रहे, खनन गतिविथियां चालू रहीं, जंगलों को काटा जाता रहा।

कुदरत के संदेश

वायनाड जैसी आपदाएं आती रहती हैं, लेकिन हम सबक सीखने को तैयार नहीं। सच है कि विकास का पैटर्न, आर्थिक गतिविधियों की दिशा बदलना आसान नहीं, लेकिन यह कठिन काम अब और टाला नहीं जा सकता। ये आपदाएंप्रकृति की ओर से भेजी जाने वाली गंभीर चेतावनी हैं, जिनकी अनदेखी सबके लिए घातक होगी।

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