सकर्रा गांव में परंपरा अनुसार भोजली पर्व धूमधाम से आयोजित किया गया। इस अवसर पर पचास वर्ष से चली आ रही भोजली यात्रा में सर्वप्रथम पूरे गांव से एकत्र भोजली को दीप धूप प्रज्वलित कर नारियल भेंट कर ग्रामीण परम्परा अनुसार पूजन किया । रंग बिरंगे पोशाक में बच्चो महिलाओं ने पूजन पश्चात रैली के रूप में देवी गंगा देवी गंगा लहर तुरंगा के गीतों के साथ दर्रीपारा में शिव प्रतिमा से निकली जो राम मंदिर होते हुए पूरे ग्राम का भ्रमण करते हुए महामाया मंदिर पहुंची।भोजली यात्रा 200 से अधिक भोजली शामिल हुई है, गेहूं के शुभ पौधे को लेकर प्रेम मित्रता एवम् सम्मान के स्वरूप छोटे उम्र के लोग बड़े बुजुर्गों को स्वर्ण भोजली को प्रतीकात्मक भेंट कर बडों से आशीर्वाद प्राप्त किया।
भोजली का त्यौहार सिर्फ मित्रता का ही उत्सव नहीं है, बल्कि नई फसल की कामना के लिए गांवों में यह त्योहार मनाया गया.महिलाएं एक-दूसरे को भोजली का दूब भेंट कर जीवन भर मित्रता का धर्म निभाने का संकल्प लेती हैं. भोजली त्यौहार के मौके पर महिलाएं और युवतियों ने भोजली की टोकरियां सिर पर रखकर तालाब किनारे पहुंची और विसर्जन किया गया. सभी पारंपरिक रस्मों के साथ महामाया तालाब में भोजली का विसर्जन किया गया.
भोजली प्रतियोगिता का आयोजन
इसके बाद भोजली प्रतियोगिता किया गया। इसमें प्रथम साधना कर्ष , दूसरा प्रिंसी कौशिक,तीसरा नीतू साहू रही। शेष तीन प्रतिभागी को सांत्वना पुरस्कार भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रथम स्थान को शशि ट्रेडर्स ,कौशिक एग्रो के सौजन्य, एवं रामसनेही साहू की स्मृति में एवं जितेंद्र ,धीरेंद्र गौरहा के द्वारा तीनों को सील्ड प्रदान किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में नंद कुमार कर्ष, शम्भूदयाल साहू, प्रह्लाद साहू भूपेंद्र कौशिक विंदा कौशिक हेम लाल साहू माधो श्रीवास हरीश तिवारी, रोहित कौशिक, सुरेंद्र साहू, करण यादव, भरत लाल तिवारी, बिहारी कर्ष, गोवर्धन, छोटू, एवं ग्रामवासियों ने सहयोग प्रदान किया।
भोजली पर्व को मित्रता दिवस के रूप में भी मनाया जाता है
छतीसगढ़ के पारंपरिक पर्व भोजली जो मित्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है. भाईचारे और सद्भावना का प्रतीक है. अच्छी वर्षा और फसल एवं सुख-समृद्धि की कामना के लिए रक्षाबंधन के दूसरे दिन भोजली पर्व मनाया जाता है. इसे कई स्थानों पर भुजरियां/कजलियां नाम से भी जाना जाता है.