विजयादशमी कहें या दशहरा, ये अश्विन माह के दसवें दिन मनाया जाता है. नौ दिवसीय मां दुर्गा के नवरात्रों का दशहरे के दिन ही समापन होता है. रावण दहन के साथ ही यह त्योहार समाप्त हो जाता है.
कहा जाता है कि विजयादशमी सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि यह प्रतीक है झूठ पर सच्चाई की जीत का, साहस का, नि:स्वार्थ सहायता का और मित्रता का. बुराई पर अच्छाई की हमेशा जीत होती है, इस बात को समझाने के लिए दशहरे के दिन रावण के प्रतीकात्मक रूप का दहन किया जाता है.
बुराइयों का प्रतीक कहे जाने वाले दशानन का आज दहन कर हम भले ही विजयादशमी की बधाई एक-दूसरें को दे लें लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह तभी साकार हो पाएगी जब हम सही मायने में हालातों को समझें। आम जनता से जुड़ी उन तमाम बुराइयों को अंत होना बेहद जरूरी हो गया है जो समाज को गंदा कर रही हैं। इसके लिए शासन, प्रशासन, नेता, अधिकारियों के साथ ही हम सब भी इतने ही जिम्मेदार हैं। आइए इस दशहरे पर संकल्प लें और 10 सिर वाले दशानन के दहन के साथ 10 ज्वलंत बुराइयों, समस्याओं का भी नाश करें।
दशहरे पर इन 10 बुराइयों का अंत भी जरूरी, तभी साकार होगा पर्व
01. गौ वंश की बदहाली
–हम उन्हीं भगवान राम के जीत का पर्व आज मना रहे हैं जिन्होंने द्वापर में गाय को मां कहा, उनकी सेवा में सर्वत्र न्यौछावर कर दिया। आज वही माता कही जाने वाली गाय दर-दर भटकने मजबूर है। रोजाना हादसों का शिकार हो रही है, कोई उन्हें देखने वाला नहीं। उनका संरक्षण ही रावण के पहले सिर का अंत है।
02. किसानों की दुर्दशा
-धरतीपुत्र कहे जाने वाले किसानों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। प्राकृतिक आपदा, उत्पादन में कमी और उपज का सही दाम नहीं मिलने से परेशान किसानों को सरकारों से भी कुछ नहीं मिलता। देश के लिए अन्न कमाने वाले अन्नदाता को उनका हक दिलाना और उनके लिए कुछ बेहतर करना ही रावण के दूसरे सिर का अंत होगा।
03.पर्यावरण को बचाने का लें संकल्प
– बढ़ते प्रदूषण के कारण आज पर्यावरण दूषित हो चुका है, जिससे गंभीर बीमारियां भी उत्पन्न हो रही हैं। इसके साथ ही मौसम में भी बदलाव देखा जा रहा है। बिगड़ते पर्यावरण संतुलन को लेकर पूरा विश्व चिंतित है। प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बनता है कि पर्यावरण को बचाने के लिए वह पौधरोपण करे। रावण के पुतले के दहन के साथ हमें यह संकल्प लेना होगा तभी रावण के तीसरे सिर का जलना साकार हो जाएगा।
04.जल ही जीवन है, अब न संभले तो होंगे घातक परिणाम
-जल के बिना जीवन संभव नहीं है। यह बात हर नागरिक जानता है, लेकिन जल संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता का अभाव है। हमें जल की बर्बादी रोकनी होगी। जल संरक्षण की जिम्मेदारी हर नागरिक की बनती है। इस पर ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में एक-एक बूंद पानी के लिए तरसना होगा। विजय दशमी पर हमें जल संरक्षण का प्रण लेना होगा।
05. लचर प्रशासनिक तंत्र
-आम आदमी के जीवन में हर दिन पडऩे वाले प्रशानिक काम में सामने आ रही लचर व्यवस्थाओं ने जनता का भरोसा खत्म कर दिया है। आज हम अपने खुद के घर, वार्ड की समस्या से लेकर शासन-प्रशासन के बड़े जिम्मेदारों तक पहुंचने में परेशान हैं। विश्वास खोती प्रशासनिक व्यवस्था का खात्मा कर नई भरोसेमंद व्यवस्था से ही जनता को सुकूं मिलेगा, तभी रावण के बुराई रूपी पांचवे सिर का खात्मा ठीक होगा।
06.शिक्षित लोगों का राजनीति में सक्रिय होना जरूरी
-किसी भी समाज को बर्बाद होने में उस समाज के पढें लिखे लोगों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता हैं जब वो ये बोलते हं कि हमारा राजनीति से कोई मतलब नहीं हैं यानि वो अपने से कम पढ़े लिखे या हम कह सकते हैं कम शिक्षित व्यक्ति को अपने ऊपर शासन करने के लिए बोलते हैं।
राजनीति में शिक्षित लोगों का आना बहुत जरूरी हैं लेकिन सिर्फ शिक्षित होने से काम नहीं चलेगा शिक्षा के साथ साथ राजनेता के अंदर इमानदारी भी होनी चाहिए।एक सभ्य समाज और वहां रहने वाली जनता की समस्या को अपना मानने वाला राजनीतिक सिस्टम होगा, तभी आज दशहरा साकार माना जाएगा।
07. महिलाओं पर अत्याचार
-शारदेय नवरात्री के दौरान शक्ति स्वरूपा नौ देवियों की आराधना हमने की लेकिन दो दिन (अष्टमी, नवमी) कन्याभोज करवाने वाले लोग उसी कन्या को 363 दिन बोझ समझते हैं, महिलाओं के प्रति घटिया सोच उनके लिए हर पल खतरा पैदा कर रही है। एक सुरक्षित माहौल व स्वस्थ्य विचारधारा से ही रावण का सातवें सिर रूपी बुराई का विनाश हो पाएगा।
08. सोशल मीडिया का दुरुपयोग
-प्रचार-प्रसार का नकारात्मक प्रोपोगेंडा और राजनीति सहित बिजनेस का प्लेटफॉर्म बन चुके सोशल मीडिया का दुरुपयोग हर वर्ग के लोग इस कदर कर रहे हैं कि अब उसकी किसी चीज का भरोसा ही जनता में नहीं बचा। सोशल मीडिया से होने वाले दुरुपयोग से जनता भ्रमित हो रही है। इस गंभीर बुराई का अंत करना रावण दहन से भी ज्यादा जरूरी है।
09. धर्म के नाम पर अंधविश्वास
-हमारे शास्त्रों में धर्म की जो परिभाषा दी गई है उससे दूर होता समाज आज इसका उपयोग निजी स्वार्थों में करने लगा है और जनता भी उसी धर्म के नाम पर अंधविश्वास फैलाने में लगे हैं। चाहे वह किसी को धर्म के नाम पर डराना हो या विभिन्न प्रकार के आंडबर करना। ईश्वर को आंडबर नहीं समर्पण चाहिए, स्वस्थ्य भावना से ही धर्म का सही प्रचार हो पाएगा। इस बुराई का अंत होने पर ही रावण रूपी बुराई के नौंवे सिर का जलना सार्थक होगा।
10. दूर हो असमानता व भेद-भाव
-समाज की पेज-थ्री सोसायटी (व्हीव्हीआईपीज) हो या अन्य कोई तथातथित बड़े लोग, इनके द्वारा तैयार की गई एक असमानता की दीवार ने समाज को दो विशेष वर्गों में बांट दिया है। एक छोटे और एक बड़े, जिससे हर चीज में असमानता आ गई है, वह चाहे घर, परिवार, समाज या राष्ट्र। हर जगह यह असमानता कायम है। इस को नष्ट करने से ही दशानन रावण का नाश हो पाएगा और हम सभी का दशहरा मंगलमय हो पाएगा।