रथयात्रा विशेष -जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी रोचक मान्यताएं
महाप्रभु जगन्नाथ को कलियुग का भगवान भी कहा जाता है। जगन्नाथ महाप्रभु अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ पुरी में रहते हैं। उनके कुछ ऐसे रहस्य हैं जिन्हें आज तक कोई नहीं जान पाया है।
हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ति बदली जाती है, उस समय पूरे पुरी शहर में अंधेरा छा जाता है यानी पूरे शहर की लाइटें बुझा दी जाती हैं। लाइटें बंद होने के बाद सीआरपीएफ बल मंदिर परिसर को चारों तरफ से घेर लेते हैं। उस समय कोई भी मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता।
ब्लैकआउट का कारण
मंदिर के अंदर अंधेरा है। पुजारी की आंखों पर पट्टी बंधी है। पुजारी के हाथों में दस्ताने हैं। वे पुरानी मूर्ति से “ब्रह्म पदार्थ” निकालकर नई मूर्ति में डाल देते हैं। आज तक किसी को नहीं पता कि यह ब्रह्म पदार्थ क्या है। आज तक किसी ने इसे देखा नहीं है। हजारों सालों से इसे एक मूर्ति से दूसरी मूर्ति में स्थानांतरित किया जा रहा है।
यह ब्रह्म पदार्थ भगवान श्री कृष्ण से संबंधित है। लेकिन यह क्या है, कोई नहीं जानता। यह पूरी प्रक्रिया हर 12 साल में एक बार होती है, उस समय सुरक्षा बहुत अधिक होती है। लेकिन आज तक कोई पुजारी यह नहीं बता पाया कि महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ति में क्या है?
कुछ पुजारी कहते हैं कि जब हमने उसे अपने हाथों में लिया तो वह खरगोश की तरह उछल रहा था। आँखों पर पट्टी थी, हाथों में दस्ताने थे, इसलिए हम सिर्फ़ महसूस कर सकते थे। लेकिन वह भगवान कृष्ण का हृदय है ।
जगन्नाथ मंदिर की विशेषताएं
भगवान जगन्नाथ मंदिर के अंदर पहला कदम रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई नहीं देती, जबकि आश्चर्य की बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर के बाहर एक कदम रखते हैं, समुद्र की आवाज सुनाई देती है।
आपने अधिकतर मंदिरों की छतों पर पक्षियों को बैठते और उड़ते देखा होगा, लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता।
झंडा सदैव विपरीत दिशा में लहराता है।
भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की छाया दिन में किसी भी समय नहीं पड़ती।
भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर लगा झंडा रोज बदला जाता है, मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 साल के लिए बंद हो जाएगा
इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से आपकी ओर देखता है।
भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 मिट्टी के बर्तन एक दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, जो लकड़ी की आग पर ही पकते हैं, इस दौरान सबसे ऊपर वाले बर्तन का पकवान सबसे पहले पकता है।
भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि जैसे ही मंदिर के कपाट बंद होते हैं, प्रसाद भी समाप्त हो जाता है।