रायपुर:- स्वतंत्रता आंदोलन की अलख जगाने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जब रायपुर आए थे। उस समय गांधीजी ने पुरानी बस्ती के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल जैतूसाव मठ में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को संबोधित किया था।
इसी दौरान छुआछूत का भेद मिटाने के लिए मठ में स्थित कुएं से एक पिछड़ी जाति की बालिका के हाथों जल निकलवाकर पीया था। गांधीजी की यादों को अक्षुण्ण रखने के लिए जैतूसाव मठ के हाल का नामकरण गांधी सदन रखा गया है। मठ का दर्शन करने आने वाले श्रद्धालु गांधीजी की प्रतिमा का भी दर्शन करते हैं।
इतिहासकार डा. रमेंद्रनाथ मिश्र बताते हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दो बार रायपुर आए थे। पहली बार 1920 में और दूसरी बार 1933 में आए थे। इस दौरान प्रदेश के अन्य शहरों दुर्ग, धमतरी समेत अन्य शहरों में देशभक्ति की अलख जगाई थी।
रमेंद्रनाथ मिश्र बताते हैं कि 1920 में कुरुद के समीप कंडेल नहर जल सत्याग्रह के दौरान आए थे। उस समय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी छोटेलाल श्रीवास्तव के नेतृत्व में किसानों ने आंदोलन किया था। अंग्रेजों ने किसानों पर नहर से पानी चुराने का आरोप लगाकर सिंचाई कर वसूलने अत्याचार किया था।
जैतूसाव मठ का ऐतिहासिक कुआं
गांधीजी जब जैतूसाव मठ में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ बैठक ली थी। गांधीजी को जब पता चला कि मठ के कुएं से पिछड़ी जाति के लोगों को पानी नहीं निकालने दिया जाता, तब छुआछूत की भावना खत्म करने गांधीजी ने एक पिछड़ी जाति की बालिका को बुलवाकर कुएं से पानी निकलवा था। बालिका के हाथ से जल पीकर अन्य लोगों को जल पीने प्रेरित किया था। इसी कुएं के समीप ही गांधी सदन है जहां चरखा चलाते हुए गांधीजी की कांस्य प्रतिमा आकर्षण का केंद्र है।